उपेक्षा की भेंट चढ़ गया करनैलगंज का सुप्रसिद्ध सावन झूला मेला
करनैलगंज/गोण्डा - करनैलगंज का सावन झूला मेला दूर दराज के इलाकों तक प्रसिद्ध था पर अब यह महज खानापूर्ति मात्र ही रह गया है श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से प्रारंभ होकर पूर्णिमा के दिन समाप्त होने वाले इस झूला मेला में नगर के मुख्य मंदिरों में झांकियां सजाई जाती थी और रहस्य नाटक आदि कार्यक्रमों का आयोजन धार्मिक उत्साह व मनोरंजन के लिए किया जाता था तो वही इस झूला मेले में छोटे दुकानदार अपनी जीवका भी चला लेते थे क्योंकि बरसात के दिनों में उनकी आय नाम मात्र ही रह जाती थी,लेकिन इस मेले से उनकी जीविका बेहतर ढंग से चल जाती थी। कुछ लोग यह तर्क भी देते हैं की नगर के महाजनों द्वारा गरीब तबके के लोगों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से भी इस मेले का आयोजन किया जाता था । वैसे तो दिनों दिन लोगों में धर्म की आस्था बढ़ रही है पर इस झूला मिले की ओर कोई भी सामाजिक संगठन नवयुवक संगठन ध्यान नहीं दे रहे ऐसा किस कारण से है यह बात अब तक नहीं स्पष्ट हो पाया पर लोगों के जेहन में यह प्रश्न जरूर चल रहा है की अन्य धार्मिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाली युवा पीढ़ी ध्यान नहीं दे रही और ना ही कोई अन्य धार्मिक संगठन जनप्रतिनिधि ही। वहीं अपने जीवन की आधी उम्र पार कर चुके लोग इस ऐतिहासिक मेले को याद करते हैं कि उनके बचपन में कितने अच्छे तरीके से इस मेरे का आयोजन किया जाता था।
लोगों के घरों में रिश्तेदारों की उमड़ती थी भीड़
लोग अपने रिश्तेदारों को भी बाहर से इस मेले के दौरान बुलाते थे,उनके घरों में रिश्तेदारों की भारी भीड़ इकट्ठा होती थी। कैलाशबाग और गाड़ी बाजार में आयोजित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों की चर्चा आज भी लोग करते हैं । आज के आधुनिकता के इस दौर में जब सारी चीज सहज उपलब्ध है तो ऐसे में इस मेले को भी एक नए स्वरूप देकर पुनः आयोजन किए जाने की आस लगाए हुए हैं। युवा पीढ़ी को एक बार इस दिशा में सोचना होगा और प्रयास करना होगा कि मेले का एक बार फिर से जैसे कि उनके बुजुर्गों ने आयोजन किया था इसे उससे भी अच्छे स्वरूप में लोगों के बीच आयोजित किया जा सके। नगर के गुड़ाही बाजार में बने श्रीराधाकृष्ण मंदिर सहित अन्य मंदिरों में परम्परागत रूप से हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी इस वर्ष भी झांकी सजाई गई है आरती के बाद प्रसाद वितरित किया जा रहा है।
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