Sep 20, 2019

अयोध्या/ देवकाली- सावित्री ने पिता को कन्धा देकर रचा इतिहास, पेश की अद्भुद मिशाल , पढ़े खबर ।

सावित्री ने पिता को कन्धा देकर रचा इतिहास, पेश की अद्भुद मिशाल , पढ़े खबर ।   अयोध्या/ देवकाली।

दुनिया मे लड़को द्वारा कन्धा देकर अपने पिता का अंतिम संस्कार करते हुये तो देखा होगा, लेकिन आजस सावित्री ने अपने बाप को न केवल कन्धा दिया बल्कि बाप को मुखाग्नि देकर बेटा - बेटी दोनो का फर्ज निभाकर इतिहास रचा है। वह इतिहास जिसे आज तक मैंने सिर्फ फिल्मों, टीवी खबरों या समाचार पत्रों में ही पढ़ा था। कल रात अचानक सावित्री के पिता की मृत्यु हो गई। थोड़ा बीमार तो थे... लेकिन इतना नहीं कि दुनिया से विदा ले लें। इसीलिए शायद किसी ने यह नहीं सोचा था कि वह इतना जल्दी साथ छोड़ जाएंगे। पर नियति के आगे किसकी चली है।




     जनपद आयोध्या के देवकाली में रहने वाली सावित्री एक ऐसी लड़की जिसने अपनी उम्र के 29 सावन देखे हैं। पर हर सावन वैसा नहीं बीता जैसा बाकी लड़कियों का बितता है। उम्र और समझ बढ़ने के साथ शुरू हुआ उसके संघर्षों का दौर। मां-पिता और दो बेटियों का छोटा सा परिवार। जिसमें से एक छोटी बेटी सावित्री है और एक बड़ी बेटी जो अब लगभग 33-34 साल की हो चुकी है..  बिल्कुल मानसिक विक्षिप्त है। पिता छोटे-मोटे काम कर 2-4 पैसे जुटा लेते थे और इन 2-4 पैसों को 8-10 पैसों में बदलने के लिए सावित्री ने पढ़ाई के साथ-साथ छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर पिता के साथ परिवार चलाने में उनका हाथ बटाना शुरू किया। खुद भी पढ़ती, छोटे से स्कूल में पढ़ाती भी और समय मिलने पर ट्यूशन भी पढ़ाती।



        छोटी सी झोपड़ी नुमा घर में चार जन का परिवार...बरसात के दिनों में झोपड़ी के उस कोने में जगह तलाशता था जिधर पानी ना टपक रहा हो। कुछ बारिश के टपकते हुए पानी को जगह-जगह बर्तनों में रोका जाता था ताकि झोपड़ी के अंदर पानी ना इकट्ठा हो जाए। यह संघर्ष के दिन ही तो थे उस लड़की के... जो घर में सबसे छोटी तो थी लेकिन परिस्थितियों ने उसे मां-पिता और बड़ी बहन सब की जिम्मेदारियां देकर घर में सबसे बड़ा बना दिया था।

             सामान्य लड़कियों से बहुत अलग, बहुत हिम्मती, बहुत संघर्षशील है सावित्री। उसने वह दिन देखे हैं, वह परिस्थितियां झेलीं हैं जिसमें हताशा का प्रभाव ज्यादा हो जाता है। फिर भी बिना हताश हुए लगातार संघर्ष करते हुए आज उसका तीन कमरे का अपना एक छोटा सा पक्का घर है। संविदा पर नर्स की नौकरी करते हुए आज उसने अपने परिवार की स्थिति पहले से काफी बेहतर कर ली है ।


            लेकिन आज नियति का जोर तो देखो.. पिता का साया छीन लिया परिवार से। लगभग 58 वर्ष के पिता उतना कुछ तो नहीं करते थे लेकिन सावित्री को थोड़ी हिम्मत तो थी पिता से, एक संबल तो था । तुम्हारे संघर्षों को सलाम है सावित्री। अपने #पिता की #चिता को #मुखाग्नि देकर तुमने वो कर दिया है जो इतिहास बन चुका है। तुम्हारे जैसी बेटी हो तो बेटों की जरूरत ही नहीं।


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