Jan 27, 2022

खुद खेलेंगे नही तो खेल बिगाड़ेंगे

टिकटार्थी की खटिया खड़ी करने में पूरा दमखम लगाएंगे बे-टिकट बागी

  पंकज मिश्र

  गोण्डा - शतरंज की तरह चुनाव में सभी का अपना किरदार व अहमियत होती है, बस दांव- दांव की बात होती है, की ऊँट किस करवट बैठे। फिलहाल चुनावी समर में  सभी राजनीतिक दल अपनी बिसात बिछाने में जुटे हैं। इस संग्राम में कुछ अचानक योद्धाओं के  आ जाने से पहले से मौजूद रणबाँकुरे अपने साथ नाइंसाफी समझ रहे हैं। यही बागी योद्धा  अगर बाहर गए तो घात, अंदर रहे तो भितरघात दोनों की प्रबल संभावना की जा रही है। इनके भयानक परिणाम भुगत चुकी सभी  पार्टियां फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही हैं। 
    पांच साल अपने क्षेत्र में खूब जनसम्पर्क स्थापित करने वाले। अगर ये कहा जाय कि लोगों के हर दुख दर्द के हिस्सेदार बन उनके दिलों-दिमाग में अपना स्थान सुनिश्चित करने वाले ऐसे नेता अगर अपनी पार्टी से टिकट पाने से वंचित रह जाते हैं, तो क्या ये चुनाव में उस पार्टी का साथ देंगे? या फिर उस टिकटार्थी की खटिया खड़ी करने में पूरा दमखम लगाएंगे? कुछ लोगों के ये सवाल हैं तो वही कुछ लोगों के पास इसके जवाब भी  हैं, की अगर ऐसे नेता जिस पार्टी का झंडा लादकर टिकट रूपी फल की आशा में जनता की सेवा में लगे रहे हैं, वह तो कतई बर्दाश्त नही करेंगे । कहते हैं कि या तो खुद खेलेंगे या खेल बिगाड़ेंगे। वहीं कुछ  लोगों का मानना की ये ही शेष संभावित प्रत्याशी अन्य पार्टियों के टिकट पर ताल ठोंक कर अपनी प्रत्याशा शांतकर जीतने वाले दलों का  सुर- ताल बिगाड़ देंगे। तो वहीं कुछ हो सकता है की पार्टी के मान- मिनती मानकर पार्टी के पक्ष में मान भी  जाए। सुनने में तो यहाँ तक भी आ रहा है कि लड़ाके ना उम्मीद होकर अन्य दलों में संपर्क स्थापित भी करने लगे हैं। 
  जानकारों की माने तो ऐसी ही सीटों पर नाम की घोषणा करने से  सभी दलों में अब मंथन जारी है। भाजपा व सपा अंदर ही अंदर  मामला तय कर समझा बुझाकर सबको साथ लेकर  बागी होने वाले नेताओं से बचना चाहती है। तो वहीं बसपा व कांग्रेस इसी ताक में हैं कि कब ये बागी हों और उनकी तरफ रुख करें। सीट निर्धारण की  छोटी सी चूक जीत को हार में बदल सकती हैं। लोगों में सीटों को लेकर भी काफी बैचेनी बनी हुई है।

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