Breaking





Feb 25, 2023

के. वी. के. बहराइच प्रथम द्वारा प्राकृतिक खेती जागरूकता कार्यक्रम का सफल आयोजन हुआ

 के. वी. के. बहराइच प्रथम द्वारा प्राकृतिक खेती जागरूकता कार्यक्रम का  सफल आयोजन हुआ


बहराइच/कैसरगंज कृषि विज्ञान केंद्र बहराइच प्रथम द्वारा  राष्ट्रीय कृषि विकास योजनान्तर्गत, प्राकृतिक खेती जागरूकता कार्यक्रम  आई. एफ. एफ. डी. सी. कृषक सेवा केंद्र, सौगहना  चौराहा विकासखण्ड फखरपुर में आयोजित किया गया जिसमे मुख्य अतिथि के रूप में  श्री प्रभात सिंह विशेन जी सांसद प्रतिनिधि विधानसभा कैसरगंज थे।  उन्होंने  बताया कि  उत्तर प्रदेश सरकार प्राकृतिक खेती  और मोटे अनाज को बढ़ावा दे रही है जिससे किसान प्राकृतिक खेती और मोटे अनाज शुरु करके अधिक से अधिक फायदे कमाए।  केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ. बी. पी. शाही जी ने बताया कि प्राकृतिक खेती को  गौ आधारित कम लागत की प्राकृतिक खेती के नाम से भी जानते है क्यों की इसमें किसी भी प्रकार की सामग्री का इस्तेमाल करने के लिए बाजार पर निर्भर नहीं रहना पड़ता  सब कुछ घर पर उपलब्ध हो जाता है इसलिए  प्राकृतिक खेती का नारा है कि "गांव का पैसा गांव में और शहर का पैसा गांव में"  साथ हि उन्होंने बताया कि कृषक भाई  जो  पैसा  रसायनिक खाद और  दवाओं में खर्च करते  है, वह पैसा प्राकृतिक  खेती  करके  20- 37 प्रतिसत तक  बचा सकते है। क्यों की प्राकृतिक खेती में किसी भी प्रकार की दवा और रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं होता है।  साथ ही उन्होंने बताया कि कृषक भाई किसान उत्पादक संगठन बना कर भी प्राकृतिक खेती से प्राप्त होने वाले उपज को अच्छे दामों पर बेच सकते है साथ ही उन्होंने ने बताया की प्रदेश सरकार इस बार बजट में कृषि के लिए 4705.90 करोड़ रुपया  जारी किया है जिसमे से  श्री अन्न (मोटे अनाज) को बढ़ावा देने के लिए  55.60 करोड़ रुपए सामिल है। केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. शैलेंद्र सिंह जी की बताया कि धान और गेहूं की फसलें बहुत लंबे समय से लगातार उगाने के कारण जमीन की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक  दशा बिगड़ गई है जिससे खेतों में दलहनी व तिलहनी फसलें लेना जोखिम का काम हो गया है लेकिन कम लागत प्राकृतिक खेती करने से भूमि के इन गुणों में सुधार हो जाता है और दलहनी व तिलहनी की फसलें भी शुद्ध फसलों के रूप में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है. इफ्को  के एरिया मैनेजर श्री सर्वजीत वर्मा ने  नैनो यूरिया के  प्रयोग के बारे में विस्तार से बताया की नैनो यूरिया का 2-4 एमएल प्रति लीटर पानी (या 250 मिली / एकड़ 125 लीटर पानी में) के घोल का खड़ी फसल में छिड़काव करना चाहिए। केंद्र के वैज्ञानिक डा. नंदन सिंह ने बताया कि पेड़ पौधों की वृद्धि और उनसे अच्छा उत्पादन लेने के लिए जिन जिन संसाधनों की आवश्यकता होती है, उन सभी संसाधनों को पौधों को उपलब्ध कराने के लिए प्रकृति को बाध्य करना प्राकृतिक कृषि कहलाती है। साथ हि उन्होंने  घन जीवामृत के बारे में  बताया कि घन जीवा मृत सूखी खाद होती है. इसे बनाने के लिये 100 किग्रा देसी गाय के गोबर को, 2 किग्रा गुड़, 2 किग्रा दाल का आटा और 1 किग्रा सजीव मिट्टी (पेड़ के नीचे की मिट्टी या जहां रासायनिक खाद न डाली गयी हो) डाल कर अच्छी तरह मिश्रण बना लें. इस मिश्रण में थोड़ा थोड़ा गोमूत्र डालकर अच्छी तरह गूंथ लें ताकि घन जीवामृत बन जाए. अब इस घन जीवामृत को छांव में अच्छी तरह फैला कर सुखा लें. सूखने के बाद इसको लकड़ी से ठोक कर बारीक कर लें. इसे बुवाई के समय या पानी देने के 2 से 3 दिन बाद प्रयोग कर सकते हैं. इस सूखे घन जीवामृत को 6 महीने तक भण्डारित किया जा सकता है. जिला फसल सुरक्षा अधिकारी श्रीमती प्रियनंदा जी ने रबी फसलों में लगने वाले रोगों और उनके उपचार के बारे में विस्तार से बताया। केंद्र के वैज्ञानिक डा.अरुण कुमार राजभर ने  बताया कि  मुख्य फसल का लागत मूल्य सहयोगी फसलों में से लेना और मुख्य फसल बोनस के रूप में प्राप्त करना सही रूप में कम लागत प्राकृतिक है। साथ हि उन्होंने ने जीवा मृत  बनाने की विधि के  बारे में  विस्तार से बताया कि जीवामृत की मदद से जमीन को पोषक तत्व मिलते हैं। और ये एक उत्प्रेरक एजेंट के रूप में कार्य करते है. जिसकी वजह से मिट्टी में सूक्ष्म जीवों की गतिविधि बढ़ जाती है. इसके अलावा जीवामृत की मदद से पेड़ों और पौधों को कवक और जीवाणु से उत्पन्न रोग होने से भी बचाया जा सकता हैं.  जीवामृत बनाने की विधि-एक ड्रम में 200 ली. पानी डालें और उसमें 10 किग्रा ताजा गाय का गोबर, 10 ली गाय का मूत्र, 1.5 से 2 किग्रा बेसन (किसी भी दाल का आटा) 1.5 से 2 किग्रा पुराना गुड़ और 500 ग्राम मिट्टी किसी पेड़ के नीचे से लेकर मिला लें, यह सब चीजें मिलाने के बाद इस मिश्रण को 48 घण्टों के लिये छाया में रख दें, 2 से 4 दिन बाद यह मिश्रण इस्तेमाल के लिये तैयार हो जायेगा, उपयोग की विधि-एक एकड़ जमीन के लिये 200 लीटर जीवामृत मिश्रण की जरूरत पड़ती है। किसान को अपनी फसलों में महीने में 2 बार छिड़काव करना होगा. इसे सिंचाई के पानी में मिला कर भी उपयोग किया जा सकता है। इससे खेती में चमत्कार होगा। केंद्र के वैज्ञानिक श्री सुनील कुमार  ने बताया की जैविक और प्राकृतिक खेती के बीच होने वाला अंतर के बारे में  बताया कि जैविक खेती में जैविक खाद में वर्मीकम्पोस्ट और गाय के गोबर की खाद का उपयोग किया जाता है और इसे खेतों में लगाया जाता है। प्राकृतिक खेती में मिट्टी पर रासायनिक या जैविक खाद का प्रयोग नहीं होता है। इसमें ना तो अतिरिक्त पोषक तत्व मिट्टी में डाले जाते हैं और न ही पौधों को दिए जाते हैं। प्राकृतिक खेती मिट्टी की सतह पर सूक्ष्मजीवों और केंचुओं द्वारा कार्बनिक पदार्थों के टूटने को प्रोत्साहित करती है, जिससे यह समय के साथ मिट्टी में पोषक तत्वों को जोड़ती है। जैविक खेती में अभी भी जुताई, झुकना, खाद मिलाना, निराई और अन्य मूलभूत कृषि गतिविधियों की आवश्यकता होती है। प्राकृतिक खेती में ना जुताई , ना मिट्टी झुकती, ना उर्वरक होता है और न ही निराई की जरूरत होती है, ठीक वैसे ही जैसे प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र में होती है। प्राकृतिक कृषि एक अत्यंत कम लागत वाली कृषि पद्धति है, जो स्थानीय वन्यजीवों के साथ पूरी तरह से ढल जाती है। थोक खाद की आवश्यकता के कारण जैविक खेती अभी भी महंगी है। दुनिया भर में कई सफल प्राकृतिक खेती के तरीके हैं,  साथ ही बताया कि  भारत में, शून्य-बजट प्राकृतिक खेती (ZBNF) मॉडल सबसे प्रचलित है। पद्म श्री सुभाष पालेकर ने पहली बार प्राकृतिक और आध्यात्मिक कृषि प्रणाली को शुरू किया था। उन्नतुशील कृषक श्री श्रवण कुमार ने स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में विस्तार से बताया। श्री देव प्रताप सिंह ने बताया की अगर  हमे स्वस्थ्य रहना है तो प्राकृतिक खेती करना होगा।  प्राकृतिक खेती जागरूकता कार्यक्रम में 300  के आसपास कृषकों ने भाग लिया जिसमे मुख्य रूप से इफको केंद्र सौगहना केंद्र प्रभारी शुभम सिंह, रवि सिंह,  सत्यदेव सिंह, पूर्व ब्लाक प्रमुख प्रवीण कुमार सिंह, पवन सिंह, सरदार सिंह अज्जन, पूर्व प्रधान चांद बाबू, शिवाजी पांडे, राकेश पांडे, श्रवण सिंह, अंसार हुसैन, रामसागर सिंह, सोमनाथ पाठक आदि सम्मानित किसान गण मौजूद रहे।

No comments: