करनैलगंज/गोण्डा - नए परिसीमन के बाद निकाय चुनाव में नए गांवों के जुड़ने से इस बार के नगर पालिका चुनाव मे नए समीकरण के साथ विकास की नई उम्मीदें कुछ नया गुल खिला सकती हैं,पर जयचंदों की भूमिका को कम आंकना बड़ी मूर्खता साबित हो सकती है। वहीं देश की आजादी और नगर पालिका गठन के बाद से लेकर अब तक यहां से कोई भी अनुसूचित जाति का व्यक्ति अध्यक्ष की कुर्सी पर नहीं बैठा, गौरतलब यह है कि नए परिसीमन के बाद कुछ गांवों के जुड़ने से यह कयास लगाए जा रहे थे कि क्या यह सीट अनुसूचित जाति के कोटे में जा सकती ? पर अब ऐसा होना नामुमिकिन लगता है। यदि अनुसूचित जाति के मतदाताओं की भी संख्या बढ़ जाती और आरक्षण का मानक पूरा हो जाता तो आरक्षण की व्यवस्था के अंतर्गत क्या इस बार बड़े-बड़े दिग्गजों के राजनीतिक समीकरण ताश के पत्तों से बने महल के तरह तेज हवा में बिखर जाते। बीते कुछ महीनों पहले तो निकाय चुनाव के लिए मात्र दो प्रत्याशी ही आमने सामने दिख रहे थे,लेकिन जैसे जैसे चुनाव नजदीक आता जा रहा है वैसे वैसे प्रत्याशियों की संख्या में इजाफा होता जा रहा है। कई नए लोग चुनावी समर में ताल ठोकते नजर आ रहे हैं और लंगोट बांधकर अपने आकाओं की परिक्रमा करने में जुट गए हैं, कि किसी भी प्रकार से उनकी नैया पार लग जाए।
अपनी प्रबल दावेदारी जता रहे हैं उम्मीदवार
आदर्श आचार संहिता लागू होने से पहले ही रैलियों ,सोशलमीडिया तथा होल्डिग्स आदि फ्लैटफार्मों के माध्यम से लोग जनता के बीच अपनी प्रबल दावेदारी जता रहे हैं,कुछ उम्मीदवारों ने तो चुनाव कार्यालय भी खोल दिया है जहां पर अपने समर्थकों के साथ चुनावी रणनीति बनाने में जुटे हैं।
चुनाव में जयचंदो की भूमिका कम आंकना हो सकती है बड़ी मूर्खता
इस बार रणनीतिकार चाहे कितनी भी विवेकशीलता से अपनी बिसात बिछाकर शतरंजी चाल चलने की कोशिश करें,लेकिन मौजूदा समय में जिस तरह चुनावी बिगुल तेजी से बज रहा है और लोग एक दूसरे के कानाफूसी में जुटे हुए हैं ऐसी स्थिति में उम्मीदवारों का स्वविवेक ही उन्हें कामयाबी दिला सकता है।
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