कर्नलगंज(गोण्डा)लगातार अपने नापाक हरकतों से भारत को परेशान करने वाला पड़ोसी मुल्क'पाक' इस बार तगड़ी चुनौती का सामना करने वाला है।क्योंकि कश्मीर में हुए कायराना हमले के बाद सरकार दो दो हाथ करने के लिए कमर कस चुकी है और इसी का उदाहरण है सिंधु जल समझौते को रद्द किया जाना।
हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच 1960 में हुए सिंधु जल समझौते को विश्व का सबसे सफल जल समझौता माना जाता रहा है। विश्व बैंक की मध्यस्थता में बने इस समझौते के अंतर्गत भारत को पूर्वी नदियों रावी, ब्यास और सतलज पर अधिकार मिला, जबकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों सिंधु, झेलम और चेनाब का नियंत्रण सौंपा गया। इस समझौते के चलते भारत ने पाकिस्तान को उसकी आवश्यक जल आपूर्ति बिना किसी बड़े टकराव के सुनिश्चित की, यहाँ तक कि 1965 और 1971 के युद्धों के दौरान भी इस समझौते का पालन किया गया।
लेकिन अब भारत सरकार द्वारा इस समझौते को रद्द करने का कदम उठाना केवल कूटनीतिक या तकनीकी नहीं, बल्कि रणनीतिक दृष्टिकोण से भी एक बड़ा मोड़ है। यदि भारत इस समझौते को समाप्त करता है या उसमें बड़े बदलाव करता है, तो पाकिस्तान पर इसके बहुस्तरीय प्रभाव पड़ेंगे।
सबसे बड़ा प्रभाव कृषि क्षेत्र पर पड़ेगा। पाकिस्तान की लगभग 80% कृषि भूमि सिंधु प्रणाली की नदियों से सिंचित होती है। यदि भारत सिंधु, झेलम और चेनाब नदियों पर बांध बनाकर या जल प्रवाह को नियंत्रित कर लेता है, तो पाकिस्तान में जल संकट गहरा सकता है। इससे खाद्यान्न उत्पादन प्रभावित होगा, जिससे खाद्य सुरक्षा की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
दूसरा बड़ा असर बिजली उत्पादन पर पड़ेगा। पाकिस्तान में जलविद्युत परियोजनाओं की एक बड़ी संख्या इन नदियों पर निर्भर करती है। जल प्रवाह में कमी से ऊर्जा संकट और लोडशेडिंग जैसी समस्याएँ बढ़ सकती हैं।
तीसरे स्तर पर, यह मुद्दा पाकिस्तान के भीतर राजनीतिक अस्थिरता को भी जन्म दे सकता है। जल संकट के चलते आंतरिक विरोध, प्रदर्शन और सत्ता पर प्रश्नचिन्ह लग सकते हैं, खासकर ऐसे समय में जब पाकिस्तान पहले से ही आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियों से जूझ रहा है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान इस कदम को मानवाधिकार और जल अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए भारत पर दबाव बनाने की कोशिश करेगा। लेकिन भारत यह तर्क दे सकता है कि पाकिस्तान ने बार-बार आतंकवाद को संरक्षण देकर समझौते की मूल भावना का उल्लंघन किया है।
निश्चित रूप से सिंधु जल समझौते का रद्द होना भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक नए युग की शुरुआत करेगा। यह फैसला पाकिस्तान के लिए एक कूटनीतिक और भौगोलिक चुनौती बनकर उभरेगा, जिससे निपटना उसके लिए आसान नहीं होगा।और इस बार का भारत का ये प्रहार पाकिस्तान को पूरी तरह बर्बाद करने के लिए काफी होगा।
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