Oct 25, 2022

40 दिन में खत्म हुआ लखनऊ के इंजीनियर का परिवार:1 महीने पहले हुई थी पिता की मौत, अब कोई अर्थी उठाने वाला भी नहीं

संतकबीर । नगर के ढोढ़ई गांव में इस बार दीवाली नहीं मनाई गई। इस गांव में मातम छाया हुआ है। गांव वालों की आंखें नम हैं। सभी लोग अपने घरों के बाहर बैठे हैं। गांव की महिलाएं विनोद कुमार के घर में बैठी हुई हैं। ये वही विनोद कुमार है जिनकी रविवार रात को सड़क हादसे में बस्ती में मौत हो गई थी।    

         इनके साथ इनका पूरा परिवार भी इस हादसे में खत्म हो गया। 16 सितंबर को विनोद के पिता की मौत हो गई थी। अब बेटे-बहू, पोता-पोती और पत्नी की भी मौत हो गई। परिवार में अब कोई अर्थी उठाने वाला भी नहीं बचा है।

एक हादसा और खत्म हो गया पूरा परिवार

विनोद के घर में रिश्तेदारों का जमावड़ा लगा हुआ है। इस हादसे से वो लोग सदमे में हैं। वहीं गांव वाले भी विनोद को याद कर रो रहे हैं। सभी कह रहे हैं, 2 दिन पहले ही वो बोले थे कि इस बार परिवार और गांव के साथ यादगार दीवाली मनाएंगे। वो लखनऊ से गांव ही आ रहे थे, लेकिन एक हादसे ने सब खत्म कर दिया। हम लोग अब कभी भी इस दर्द को भूल नहीं पाएंगे।  

बता दें, लखनऊ में जल निगम में AE के पद पर तैनात विनोद अपनी मां सरस्वती, पत्नी नीलम (34), बेटी श्रेया और बेटे यथार्थ के साथ कार से दीवाली मनाने अपने गांव जा रहे थे। तभी बस्ती में हुए सड़क हादसे में सभी की मौत हो गई थी। सभी के शवों का पोस्टमॉर्टम बस्ती में हुआ है। अंतिम संस्कार भी बस्ती में किया गया है। परिवार के लोग बस्ती पहुंच चुके थे। शव खराब होने के कारण गांव नहीं भेजे गए।  
गांव वाले कर रहे थे विनोद का इंतजार

भास्कर की टीम विनोद के गांव पहुंची। विनोद को गांव के लोग बहुत मानते थे। विनोद के गांव वाले घर में कोई रहता नहीं था। पूरा परिवार लखनऊ में ही रहता था। गांव के लोगों को पता था कि विनोद आने वाला है इसलिए लोगों ने उसके घर के बाहर सफाई कर रखी थी। सजावट का सामान भी ले आए थे। रात में जलाने के लिए दीये भी लाए थे, लेकिन सारी तैयारियां बर्बाद हो गई। जहां खुशियां मनानी थीं वहां अब मातम हो रहा है। घर में दीवाली का सारा सामान किनारे रखा हुआ है।  

गांव में पेड़ों के नीचे बैठे लोग विनोद के परिवार की बात कर रहे थे। लोग कह रहे थे पिता को गए अभी 1 महीना भी नहीं हुआ था। अब तो पूरा परिवार ही खत्म हो गया है। बात करते-करते लोगों की आंखें नम थीं। हमने गांव के बजरंगी लाल से बात की। बजरंगी लाल ने कहा, "विनोद भइया बहुत अच्छे इंसान थे। वो कई सालों से लखनऊ में थे, लेकिन उसके बाद भी हम लोगों को नहीं भूले थे। महीने में 2 बार परिवार के साथ गांव आते थे। गांव में सबसे मिलते थे। उनके बच्चे भी बहुत प्यारे थे। सब हम लोगों को पहचानते थे। वो हम लोगों को परिवार समझते थे। कोई भी दिक्कत हो हमेशा खड़े रहे। इस गांव ने तो अपना बड़ा भाई खो दिया है।   

गांव के विनय ने बताया, "विनोद भइया को हम लोग कभी भूल नहीं सकते हैं। उन्होंने हम लोगों के लिए बहुत किया है। हमेशा हम लोगों को आगे बढ़ाने की कोशिश की है। उनके बारे में जितना बोले उतना कम है। वो हम लोगों को बहुत प्यार करते थे। कहते थे, बाबू खूब पढ़ाई करो…तुम लोगों को गांव का नाम रोशन करना है। वो हम लोगों के लिए किताबें भी लेकर आते थे। पढ़ाई में भी मदद करते थे। जब से उनके मरने की खबर सुनी है कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है। इतना कहकर विनय रोने लगा।  

गांव के प्रधान प्रदीप चौधरी ने बताया, "आज का दिन हमारे लिए काला दिन है। हमारी पूरी ग्राम सभा में शोक मनाया जा रहा है। गांव में कोई दीवाली नहीं मना रहा। लोगों के घरों में चूल्हा नहीं जला है। विनोद का जाना गांव के लिए दुखद है। हम उनकी और उनके पूरे परिवार की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। उनकी बहन और ससुराल के लोग मौके पर मौजूद हैं।  
2006 से लखनऊ में रह रहे हैं विनोद

37 साल के विनोद कुमार के पिता बलिराज गांव में किसानी करते थे। पिता बलिराज की मौत 16 सितंबर 2022 को हुई थी। साल 2006 में विनोद को जल निगम में नौकरी मिल गई थी। उनकी पहली पोस्टिंग लखनऊ में रही। फिर उनका ट्रांसफर इलाहाबाद हो गया। विनोद का 2019 में प्रमोशन हुआ। उनकी फिर से पोस्टिंग लखनऊ में हो गई। विनोद परिवार के साथ लखनऊ के इंदिरा नगर में सरकारी आवास में रहते थे।  

           रुधौली बस्ती से अजय पांडे की रिपोर्ट

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