उन्होंने कहा कि जिले में अनेक जलश्रोत उपलब्ध हैं। ये जलश्रोत मत्स्य जैव विविधता एवं निरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्या को मछली के रूप में उन्नत प्रोटीन उपलब्ध कराने की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। इनमें भारतीय कार्प मछली जैसे रोहू, भाकुर, नैनी एवं विदेशी कार्प मछली सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प, कामन कार्प को एक ही तालाब में पालकर उसका समुचित उपयोग कर सकते हैं। मौजूदा समय जल्द बढ़ने वाली वाली पंगगेसियस (बैकर) का पालन करके भी आय अर्जित की जा सकती है। एकीकृत मत्स्य पालन के तहत मुर्गी, बत्तख, गाय, बकरी, धान, बागवानी के साथ भी मछली पालन कर नवयुवक रोजगार एवं आय हासिल कर सकते हैं।
पशुपालन विशेषज्ञ डॉ. डीके श्रीवास्तव ने बताया कि मछली पालन के लिए काली चिकनी मिट्टी, सिल्क युक्त काली मिट्टी, दोमट युक्त चिकनी मिट्टी तालाब निर्माण के लिए उपयुक्त होती है। पौध रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रेम शंकर ने बताया कि तालाब की सफाई, चूना आदि की व्यवस्था सही प्रकार से होती रहे तो मछलियों में बीमारी की सम्भावना कम ही रहती है। डॉ. बीवी सिंह वैज्ञानिक तरीकों से मछलियों को भोजन देना चाहिए। हरिओम मिश्रा ने कहा कि तालाब में ग्रास कार्प मछलियों का पालन क्योंकि यह जल्दी बढ़ती हैं। प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रगतिशील कृषक तथा कर्मचारी निखिल सिंह, जेपी शुक्ला, प्रह्लाद सिंह आदि मौजूद थे।
रुधौली बस्ती से अजय पांडे की रिपोर्ट
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