विशेषज्ञों ने बताया कि बच्चों में होने वाली गठिया को रयूमेटिक आर्थराइटिस कहते हैं। सात से 14 साल के बच्चों में होती है। प्रारंभ में गले में खराश, खाना एवं पानी पीने में परेशानी होती है। ज्वर भी आता है। घुटने में असर होता है। सूजन, दर्द, मोड़ने-फैलाने में दर्द होता है। इलाज न होने की दशा में दिल पर भी असर पड़ता है, दिल के वाल्व को खराब कर देता है। विशेषज्ञ से संपर्क कर इलाज कराना चाहिए।
प्रो. रहमत अली की मानें तो दूसरे वॉयरल, बैक्टीरियल संक्रमण के कारण भी यह रोग हो रहा है। प्रदूषण और वॉयरल संक्रमण के कारण होनी वाली गठिया के रोगी बढ़ रहे हैं। शरीर कमजोर होने के कारण किशोरों को भी गठिया हो रहा है। जोड़ों में सूजन आ जाती है। डेंगू और चिकुनगुनिया की चपेट में आए रोगी भी गठिया से पीड़ित हैं।
उनका कहना है कि वॉयरल संक्रमण से शरीर में एंटीबॉडीज बनती है, यह एंटीबॉडीज भ्रमित हो जाती है, जिसकी वजह से अपने ही शरीर पर हमला करने लगती हैं। गठिया के अलावा रोगी के हृदय, फेफड़ों, गुर्दे जैसी जगह पर भी असर आने लगता है। अगर सही समय पर इलाज शुरू करा दिया जाता है तो रोग की समस्या ज्यादा गंभीर नहीं होने पाती है।
अस्थि रोग विभाग के डॉ. सौरभ द्विवेदी ने बताया कि रियुमेटॉयड आर्थराइटिस की चपेट में युवा अधिक आ रहे हैं। अस्पताल के एक रुपए के पर्चे पर फ्री इलाज और ऑपरेशन हो रहा है। आयुष्मान कार्ड पर भी ऑपरेशन किया जा रहा है। कॉलेज के प्राचार्य प्रो. मनोज कुमार, डॉ. अल्का शुक्ला, डॉ. लक्ष्मी नाथ मिश्रा, डॉ. अनिल कुमार यादव, डॉ. राजेश पांडेय, डॉ. बीएल कनौजिया, डॉ. पुरुषोत्तम लाल, डॉ. दिलीप कुमार वर्मा, डॉ. स्वराज शर्मा सहित अन्य स्टॉफ व आम लोग शामिल रहे।
रुधौली बस्ती से अजय पांडे की रिपोर्ट
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